कल्पना और भाषा की अद्भुत पकड़

कल्पना और भाषा की अद्भुत पकड़:
देवी नागरानी जी का
नया
ग़ज़ल-संग्रह “दिल से दिल तक”

श्रीमती देवी नागरानी जी के अब तक दो ग़ज़ल-संग्रह “ग़म में भीगी ख़ुशी” और “चराग़े-दिल” प्रकाशित हो चुके हैं। तीसरे ग़ज़ल-संग्रह “दिल से दिल तक” का विमोचन महरिष ‘गुंजार समिति’ द्वारा आयोजित किए गए समारोह में ११ मई २००८ रविवार के दिन आर.डी. नेशनल कालेज, मुम्बई के कॉन्फ़्रेंस रूम में संपन्न हुआ था।

अपनी संवेदना और भाषा की काव्यात्मकता के कारण देवी जी संवेदनशील रचनाकार कही जा सकती हैं। देवी जी अपने इस नये ग़ज़ल- संग्रह में ग़ज़लों को कुछ इस अंदाज़ से कहती हैं कि पाठक पूरी तरह उन में डूब जाता है। विचारों के बिना भाव खोखले दिखाई देते हैं। इस संग्रह में भावों और विचारों का सुंदर सामंजस्य होने के कारण यह पुस्तक सारगर्भित बन गई है।

शाइर ज़िन्दगी की जटिलताओं के बीच अपने संघर्ष का इज़हार करने के लिए एक उपकरण ढूंढता है जो देवी जी की ग़ज़लों में अभिव्यक्त हुई है। देवी जी तकनीकी नज़ाकतों से भी भली भांति परिचित हैं। ज़िन्दगी अक्सर सीधी-सादी नहीं हुआ करती। उन्होंने लंबे संघर्षों के बीच अपनी राह बनाई हैः

जिसे लोग कहते हैं जिंदगी
वो तो इतना आसां सफ़र नहीं.

तवील जितना सफ़र ग़ज़ल का
कठिन है मंज़िल का पाना उतना.

नारी से जुड़े हुए गंभीर सवालों को उकेरने और समझाने के लिए उनके पारदर्शी प्रयास से ग़ज़लों के फलक का बहुत विस्तार हो गया है। फिर भी स्त्री-मन की तड़प, चुभन और अपने कष्टों से झूझना, समाज की रुग्ण मानसिकता आदि स्थितियों की परतें खोल कर रख देना तथा अपनी रचनाओं की अंतरानुभूति के साथ पाठकों को बहा ले जाती हैं:

कैसी दीमक लगी है रिश्तों की
रेज़े देवी है भाईचारों के

नारी के जीवन की पीड़ा, संघर्ष और अस्तित्व की पहचान भी कराती हैं:

“ये है पहचान एक औरत की
माँ बाहन, बीवी, बेटी या देवी.”

ग़ज़ल कहने की अपनी अलग शैली के कारण देवी जी की ग़ज़लों की रंगत कुछ और ही हो जाती है। अतीत का अटूट हिस्सा हो कर यादों के साथ पहाड़ जैसे वर्तमान को भी देख सकते हैं:

कुछ न कुछ टूटके जुड़ता है यहाँ तो यारो
हमने टूटे हुए सपनों को बहुत ढोया है

इम्तिहाँ ज़ीस्त ने कितने ही लिए हैं देवी
उन सलीबों को जवानी ने बहुत ढोया है.

उनकी शब्दावली, कल्पना और भाषा की अद्भुत पकड़ देखिएः

मुहब्बत की ईंटें न होती अगरचे
तो रिश्तों की पुख़्ता इमारत न होती.

वो सोच अधूरी कैसे सजे
लफ़्ज़ों का लिबास ओढ़े न कभी.

आज की शा‘इरी अपने जीवन और वक्त के बीच गुज़रते हुए तरक्की कर रही है। समय की यातना से झूझती है, टकराती है और कभी कभी लाचार हालत में तड़प कर रह जाती हैः

ज़िदगी से जूझना मुशकिल हुआ इस दौर में
ख़ुदकुशी से ख़ुद को लेकिन मैं बचाकर आई हूँ

वक्ते आखिर आ के ठहरे है फरिश्ते मौत के
जो चुराकर जिस्म से ले जायेंगे जाने कहाँ.

उनकी ग़ज़लों के दायरे का फैलाव सुनामी जैसी घटनाओं के समावेश करने में देखा जा सकता है, जिसमें आर्द्रता है, मानवीयता हैः

सुनामी ने सजाई मौत की महफ़िल फ़िज़ाओं में
शिकारी मौत बन कर चुपके-चुपके से कफ़न लाया.

आज धर्म के नाम पर इंसान किस तरह पिस रहा है। धनलोलुपता के कारण धर्म के रक्षक ही भक्षक बन कर धर्म और सत्य को बेच रहे हैं। इस ग़ज़ल के दो मिस्रों को देखिएः

मौलवी पंडित खुदा के नाम पर
ख़ूब करते है तिजारत देखलो

दाव पर ईमान और बोली ज़मीरों पर लगी
सौदेबाज़ी के नगर में बेईमानी दे गया.

निम्नलिखित पंक्तियों में अगर ग़ौर से देखा जाए तो यह आईना उनके अंदर का आईना है या वक्त का या फिर महबूब का जिसके सामने खड़े होकर वो अपने आप को पहचानतीं हैं :

मुझको सँवरता देखके दर्पण
मन ही मन शरमाया होगा.

इन अशा‘र में गूंजती हुई आवाज़ उनकी निजी ज़िन्दगी से जुड़ी हुई है। कितनी ही यातनाएं भुगतनी पड़े, पर वे हार नहीं मानती, बस आगे बढ़ती जाती हैं:

पाँव में मजबूरियों की है पड़ी ज़ंजीर देवी
चाल की रफ़्तार लेकिन हम बढ़ाकर देखते हैं.

हौसलों को न मेरे ललकारो
आँधियों को भी पस्त कर देंगे.

जीवन के लंबे अथक सफ़र पर चलते चलते देवी जी ज्यों ही मुड़ कर अतीत में देखती हैं तो बचपन के वो क्षण ख़ुशी देकर दूर कहीं अलविदा कहते हुए विलीन हो गयाः

वो चुलबुलाहट, वो खिलखिलाहट
वो मेरा बचपन न फिर से लौटा.

आशा है कि देवी नागरानी जी का यह ग़ज़ल-संग्रह ग़ज़ल साहित्य में अपना उचित स्थान पायेगा। हार्दिक शुभकामनाओं सहित

महावीर शर्मा

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‘दिल से दिल तक”
मूल्य़ – रुपये 150/- $5
Publisher: Devi Prakashan
9-D, Corner View Society
15/33 Road, Bandra,
Mumbai – 400 050

10 Comments »

  1. 2

    बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।

  2. 4

    आदरणीय महावीर जी
    देवी जी से मुझे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है…..मैं उन्हें अपनी दीदी मानता हूँ, इस पुस्तक के विमोचन के अवसर पर मुझे उन्होंने बुलाया मेरे लिए ये फक्र की बात थी…उनकी इस पुस्तक को मैं तब से अब तक कई बार पढ़ चुका हूँ…कितने सरल लफ्जों में वो कितनी गहरी बात कर जाती हैं…ये एक ऐसा हुनर है जो मुझे उनसे सीखना है…आप ने उनके बारे में जो लिखा वो उसकी सही हकदार भी हैं…
    नीरज

  3. देवी जी को बहुत बधाई और इस उम्दा रपट के लिए आपको बधाई एवं आभार.

  4. एक अच्छी पोस्ट के लिये देवी जी को बधाई ओर आप को धन्यवाद

  5. आदरणीय महावीर सर ,
    बहुत सही समीक्षा की हैं आपने दिल से दिल तक एक बहुत अच्छा गज़ल संग्रह हैं जिसे कई बार पढ़ा जा सकता हैं ,
    और देवी जी को इसके लिये बहुत बहुत बधाई ।

    सादर
    हेम ज्योत्स्ना

  6. 9
    Pran Sharma Says:

    Aadarniya Sharma jee,
    Devi Nagrani ke gazal sangarah-Dil se dil tak par aapkee sameeksha padhee hai maine. Devi jee ki gazlen to behtreen hain hee , aapkee sameeksha bhee kam nahin hai. Dono ne milkar rang jamaa diyaa hai. Dher saree badhaeean.
    Pran Sharma

  7. 10

    महावीर जी
    आपकी साईट पर कूद को पाना भी अच लगा. साथ में प्राण जी की दुआ उसमें शामिल हुई है ये सौभाग्य की बात है. समीर जी, नीरज, हेम और सभी साथिओं की तिपनी से आगे कुछ और लिखने का हौसला बना रहेगा.
    देवी नागरानी


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